जंगल की गहराइयों में एक छोटा सा घर खड़ा था, जिसे लोग ‘अकेलापन का आवास’ कहते थे। वहां रहने वाला एक युवक था जिसका नाम विनय था। विनय एक खुशहाल और उत्साही युवक था, लेकिन उसकी आवाज़ के पीछे एक अद्भुत दास्तान छिपी थी।
विनय का अकेलापन बचपन से ही उसके साथ था। उसके माता-पिता दुनिया के यात्रा करते थे, और वह घर में अकेले ही बिताता था। उसने अकेलापन के साथ-साथ अपने अंदर की स्थिति समझना शुरू किया। उसने किताबों को अपने साथी बना लिया और उनसे बातचीत करने लगा। उसके दोस्त तो किताबें और उसके विचारों से ही बने थे।
एक दिन, विनय ने सड़क पर खेलते देखा कि बच्चे अपने दोस्तों के साथ हँसते खेलते हैं। उसके मन में खुशी और उत्साह की कमी महसूस होने लगी। वह चाहता था कि वह भी दोस्त बना सके, लेकिन उसकी शर्मिंदगी और डर ने उसे रोक दिया।
विनय के दिल में अकेलापन की आवाज़ बढ़ने लगी। वह अपने आप से पूछता रहता था, “क्या मैं कभी अकेलापन से बाहर निकल पाऊंगा?” उसके दिल की आवाज़ को सुनकर, उसने निश्चय किया कि वह अपने अकेलापन को हराने के लिए कुछ करेगा।
विनय ने अपनी आवाज़ को बढ़ाते हुए एक सप्ताह के लिए अपने घर के बाहर निकलने का निर्णय लिया। उसने सोचा कि यह उसकी आत्मविश्वास की परीक्षा होगी।
विनय का पहला कदम बहुत मुश्किल से था, लेकिन उसने अपनी हिम्मत नहीं हारी। वह लोगों से मिलने और उनसे बातचीत करने लगा। पहले कुछ दिन तो उसका दिल दर्द से भरा रहा, लेकिन धीरे-धीरे वह अपनी शर्म और डर को पार करने लगा।
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